३. समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य

) प्रतिक्रियावादी समाजवाद

() सामंती समाजवाद (feudal Socialism)
फ़्रांस और इंगलैंड के अभिजातों की ऐतिहासिक स्थिति ऐसी थी कि आधुनिक बुर्जुआ समाज के ख़िलाफ़ पैंफ़लेट (pamphlets) लिखना उनका धंधा बन गया। जुलाई, १८३० की फ़्रांसीसी क्रांति में और इंगलैंड के सुधार आंदोलन [A] में इन अभिजातों को पुनः इन घुणास्पद नवप्रतिष्ठित अनभिजातों से हारना पड़ा। उसके बाद किसी गंभीर राजनीतिक लड़ाई लड़ने की संभावना सर्वथा समाप्त हो गयी। केवल साहित्यिक लड़ाई ही अब संभव थी। लेकिन साहित्य के क्षेत्र में भी पुनःस्थापन-काल() के पुराने नारों का प्रयोग असंभव हो गया था।
लोगों की सहानुभूति हासिल करने के लिए इन अभिजातों को बाह्यातः अपने हितों को आंखों से ओझल करने और केवल शोषित मजंदूर वर्ग के हितों को लेकर बुर्जुआ वर्ग के विरूद्ध अपना प्रभियोगपत्र तैयार करने को विवश होना पड़ा। चुनांचे अभिजात वर्ग ने अपने नये प्रभु के ख़िलाफ़ व्यंग्यपूर्ण तथा विद्रुपात्मक कविताएं लिखकर और उसके कानों में उसके आनेवाले सर्वनाश की भयानक भविष्योक्तियां फुसफुसाकर उससे अपना बदला लिया।
सामंती समाजवाद (feudal Socialism) की उत्पत्ति इसी तरह हुई : कुछ रोना-धोना, कुछ व्यंग्यात्मक तीर चलाना; कुछ अतीत को प्रतिध्वनित करना, कुछ भविष्य का भय दिखाना; कभी-कभी अपनी कटु व्यंग्यपूर्ण और पैनी आलोचना द्वारा बुर्जुआ वर्ग के मर्मस्थल को चोट पहुंचाना; किंतु आधुनिक इतिहास की प्रगति को ह्रदयंगम करने में (to comprehend) अपनी पूर्ण असमर्थता के कारण अपने प्रभाव में सदा हास्यास्पद रह जाना।
जनता को अपनी तरफ़ करने के लिए अभिजातों ने सर्वहारा की भीख की झोली को अपना झंडा बनाया। लेकिन जब-जब जनता उनके साथ हुई, उसने उनके कूल्हों पर पुराने सामंत वंश-चिह्त्रों के ठप्पे (hindquarters the old feudal coats of arms) ही लगे देखे और वह हंसी के ज़ोरदार और तिरस्कारपूर्ण ठहाकों के साथ उन्हें छोड़कर चल दी।
फ़्रांसीसी लेजिटिमिस्टों (Legitimists) के एक हिस्से और 'तरूण इंगलैड़' (Young England) ने यही नज़ारा पेश किया।
यह इंगित करते हुए कि उनके शोषण का तरीक़ा बुर्जुआ वर्ग के शोषण के तरीक़े से भिन्न था, सामंतवादी भूल जाते हैं कि जिन परिस्थितियों और अवस्थाओं में वे शोषण करते थे, वे बिलकुल भिन्न थी और अव कालातीत हो गयी हैं। यह दिखाते हुए कि उनके शासन में आधुनिक सर्वहारा का अस्तित्व ही नहीं था, वे भूल जाते हैं कि आधुनिक बुर्जुआ वर्ग समाज के स्वयं उनके ही रूप की अनिवार्य संतान है।
बाक़ी यह कि अपनी आलोचना के प्रतिक्रियावादी स्वरूप को वे इतना कम छिपाते हैं कि बुर्जुआ वर्ग के ख़िलाफ़ उनका सबसे बड़ा इलज़ाम यह होता है कि बुर्जुआ शासन में एक ऐसा वर्ग विकसित किया जा रहा है, जिसे पुरानी समाज-व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंकना है।
बुर्जुआ वर्ग को वे इतना इसके लिए उलाहना नहीं देते कि वह सर्वहारा को उत्पन्न कर रहा है, जितना इसके लिए कि वह क्रांतिकारी सर्वहारा को जन्म दे रहा है।
इसलिए अपने राजनीतिक व्यवहार में वे मज़दूर वर्ग के ख़िलाफ़ सभी दमनकारी उपायों में भाग लेते हैं; और रोज़मर्रा के जीवन में, अपनी शब्दाडंबरपूर्ण लफ़्फ़ाज़ी (high-falutin phrases) के बावजूद, उद्योग के कल्पवृक्ष से गिरे सोने के फलों को बीनने के लिए और ऊन, चुक़ुंदर की चीनी और आलू की स्पिरिट के व्यापार के लिए वे सत्य, प्रेम और सम्मान का सौदा करने के लिए सदैव तैयार रहते हैं।()
जिस तरह पुरोहितों और भूस्वामियों का चोली-दामन का साथ रहा है, उसी तरह पुरोहिती समाजवाद (Clerical Socialism) और सामंगी समाजवाद, दोनों जन्म के संगी हैं।
ईसाई तपश्चर्या को समाजवादी का रंग दे देने से अधिक आसान काम दूसरा नहीं है। क्या ईसाई धर्म निजी स्वामित्व, विवाह और राज्य के ख़िलाफ़ घोषणाएं नहीं करता रहा है? इन चीज़ों के बदले क्या उसने दानपुण्य और गरीबी, ब्रहाचर्य (celibacy) और शारीरिक तप, मठ-निवास और मातारूपी चर्च की शरण लेने का उपदेश नहीं दिया है? ईसाई समाजवाद (Christian Socialism) केवल वह पवित्र जल है, जिसकी छींट मारकर पादरी लोग अभिजातों की दुर्भावनओं को पावनता प्रदान करते हैं।
() निम्नबुर्जुआ समाजवाद (Petty-Bourgeois Socialism)
सामंती अभिजात वर्ग अकेला वर्ग नहीं है, जिसे बुर्जुआ वर्ग ने बरबाद किया, वही एक अकेला वर्ग नहीं है, जिसके अस्तित्व की अवस्थाएं आधुनिक बुर्जुआ समाज की आबोहवा में घुटकर रह गयी हैं और मर-मिटी हैं। मध्ययुग के बर्गर और छोटे भूमिधर किसान आधुनिक बुर्जुआ वर्ग के पूर्वगामी थे। उन देशों में, जो उद्योग और वाणिज्य की दृष्टि से अल्पविकसित हैं, ये दोनों वर्ग अब भी उदीयमान बुर्जुआ वर्ग के साथ लस्टम-पस्टम चले जा रहे हैं।
उन देशों में, जहां आधुनिक सभ्यता पूर्णतः विकसित हो चुकी है, एक नया निम्नबुर्जुआ वर्ग बन गया है, जो सर्वहारा और बुर्जुआ वर्ग के बीच झूला करता है और बुर्जुआ समाज के एक पूरक अंग के रूप में निरंतर नवजीवन धारण करता रहता है। लेकिन प्रतिस्पर्धा की क्रिया के परिणामस्वरूप इस वर्ग के अलग-अलग सदस्य निरंतर सर्वहारा की क़तारों में धकेले जाते रहते हैं; और आधुनिक उद्योग के विकास के साथ के उस क्षण को नज़दीक आता तक देखते हैं, जब आधुनिक समाज के एक स्वतंत्र अंशक के रूप में वे पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे और कल-कारख़ानों, खेती और वाणिज्य के क्षेत्र में अधीक्षक, नाज़िर और दूकान-कर्मचारी उनका स्थान ले लेंगे।
फ्रांस जैसे देशों में, जहां आधी से कहीं अधिक आबादी किसानों की है, यह स्वाभाविक था कि बुर्जुआ वर्ग के ख़िलाफ़ सर्वहारा का साथ देनेवाले लेखक बुर्जुआ शासन-व्यवस्था की अपनी आलोचना में किसान और निम्नबुर्जुआ के मानदंड का प्रयोग करें और मज़दूर वर्ग के समर्थन में इन्हीं बिचले वर्गों के दृष्टिबिंदु से आवाज उठायें। निम्नबुर्जुआ समाजवाद की उत्पत्ति इसी तरह हुई। न केवल फ़्रांस में, बल्कि इंगलैंड मे भी इस मत के प्रधान सीसमोंदी थे।
समाजवाद की इस शाखा ने आधुनिक उत्पादन की अवस्थाओं के अंतर्विरोधों का बहुत ही बारीकी के साथ विश्लेषण किया। उसने अर्थ-शास्त्रियों की पाखंडपूर्ण सफ़ाइयों का परदाफ़ाश किया। उसने मशीनों के उपयोग और श्रम विभाजन के विनाशकारी परिणामों को, पूंजी और भूमि के मुञ्टी भर लोगों के हाथों में संकेंद्रण, अत्युत्पादन और संकटों को अकाट्य रूप से प्रमाणित किया; उसने निम्नबुर्जुआ वर्ग और किसानों के अवश्यंभावी विनाश, सर्वहारा की दुर्दशा, उत्पादन में अराजकता, धन के वितरण में घोर असमानता, राष्ट्रों के बिच विध्वंसकारी औद्योगिक युद्ध, पुराने नैतिक बंधनों के विच्छेदन, पुराने पारिवारिक संबंधों और पुरानी जातियों के विघटना की ओर इशारा किया।
किंतु अपने सकारात्मक उद्देश्यों में इस तरह का समाजवाद या तो उत्पादन और विनिमय के पुराने साधनों, और उनके साथ पुराने संपत्ति-संबंधों की और पुराने समाज की पुनःस्थापना करना, या उत्पादन और विनिमय के आधुनिक साधनों को उन्हीं पुराने संपत्ति-संबंधों के ढांचे के भीतर जकड़ देना चाहता है, जिन्हें इन साधनों ने ध्वस्त कर दिया है और अनिवार्यतः कर देना था। दोनों ही हालतों में यह साथ ही साथ प्रतिक्रियावादी और यूटोपियाई है।
उद्योग को चलाने के लिए संगठित गिल्ड-संघ और कृषि में पितृसत्तात्मक संबंक इसके चरम आदर्श हैं।
अंततः, जब निर्मम ऐतिहासिक वास्तविकता ने आत्मवंचना का सारा नशा उतार दिया, तो समाजवाद का यह रूप ख़ुमारी के दौरे में आप से आप ख़त्म हो गया।
() जर्मन अथवा "सच्चा” समाजवाद
फ़्रांस का समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य, सत्तारूढ़ बुर्जुआ वर्ग के दबाव में उत्पन्न साहित्य, जो इस सत्ता के विरुद्ध संघर्ष की अभिव्यक्ति था, जर्मनी में उस समय लाया गया, जब उस देश में सामंती निरंकुशता के ख़िलाफ़ वहा के बुर्जुआ वर्ग ने अपनी लड़ाई अभी शुरू ही की थी।
जर्मन दार्शनिकों, कठदार्शनिकों और बुद्धिविलासियों (beaux esprits - men of letters) ने इस साहित्य को बड़ी उत्सुकता के साथ लपका, सिर्फ़ यह भूलते हुए कि इन कृतियों के फ़्रांस से जर्मनी में आप्रवासन के साथ फ़्रांसीसी सामाजिक अवस्थाओं का भी आप्रवास नहीं हुआ था। जर्मन सामाजिक अवस्थाओं के संपर्क में इस फ़्रांसीसी साहित्य ने अपना सारा तात्कालिक व्यावहारिक महत्व खो दिया और विशुद्ध साहित्यिक रूप ग्रहण कर लिया। चुनांचे अठारहवीं सदी के जर्मन दार्शनिकों की निगाह में पहली फ़्रांसीसी क्रांति की मांगें "व्यावहारिक तर्कबुद्धि” की सामान्य मांगों के अलावा और कुछ न थीं और क्रांतिकारी फ़्रांसीसी बुर्जुआ की इच्छा की अभिव्यक्ति उनकी दुष्टि में शुद्ध इच्छा, अपरिहार्य इच्छा, सामन्यतः सच्ची मानवीय इच्छा के नियमों की द्योतक थी।
जर्मन विद्वज्जनों (German literati) का एकमात्र काम इन नये फ़्रांसीसी विचारों का अपने प्राचीन दार्शनिक विवेक के साथ सामंजस्य स्थापित करने, या यों कहिये कि अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को तजे बिना इन फ़्रांसीसी विचारों का संयोजन कर लेने में निहित था।
संयोजन का यह काम उसी तरह पूरा किया गया, जिस तरह कि किसी विदेशी भाषा को आत्मसात किया जाता है, अर्थात अनुवाद द्वारा।
विदित है कि मठवासी किस प्रकार उन पांडुलिपियों के ऊपर, जिनमें प्राचीन मूर्तिपूजकों की क्लासिकी रचनाएं लिखी गयी थीं, कैथोलिक संतों की फूहड़ जीवनियां लिखा करते थे। जर्मन विद्वज्जनों ने अपवित्र फ़्रांसीसी साहित्य के संबंध में इस प्रक्रिया को उलट दिया। अपनी दार्शनिक बकवास को उन्होंने मूल फ़्रांसीसी कृतियों की पुश्त पर लिखा। उदाहरण के लिए, द्रव्य के आर्थिक कार्यों की फ़्रांसीसी समीक्षा की पुश्त पर उन्होंने लिखा "मानवता का वियोजन” (Alienation of Humanity), और बुर्जुआ राज्य की फ़्रासीसी समीक्षा के निचे "सामान्य के प्रवर्ग की सत्ताच्युति” (Dethronement of the Category of the General), आदि, आदि।
फ़्रांसीसी ऐतिहासिक समीक्षाओं की पुश्त पर इन दार्शनिक उक्तियों के अंतर्वेशन को उन्होंने, “कर्म-दर्शन”, “सच्चा समाजवाद”, “समाजवाद का जर्मन विज्ञान”, “समाजवाद का दार्शनिक आधार”, आदिभारी-भरकम नाम दिये।
इस तरह, फ़्रांसीसी समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य को बिलकुल शक्तिहीन बना दिया गया। और चूंकि जर्मनों के हाथों में उसने एक वर्ग के विरुद्ध दूसरे वर्ग के संघर्ष को अभिव्यक्त करना छोड़ दिया, इसलिए उन्हें ऐसा बोध हुआ कि उन्होंने "फ़्रांसीसी एकांगिता” पर क़ाबू पा लिया है और वे सच्ची अपेक्षाओं का नहीं, बल्कि सत्य की अपेक्षाओं का, सर्वहारा के हितों का नहीं, बल्कि मानव स्वभाव के, सामान्यतः मनुष्य के हितों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जो किसी वर्ग का नहीं है, जिसकी कोई वास्तविकता नहीं है और जो केवल दार्शनिक स्वैरकल्पना के कुहराच्छन्न लोक में ही रहता है।
इस जर्मन समाजवाद ने, जो स्कूल के अभ्यास जैसे अपने मामूली काम को इतना गंभीर और महत्वपूर्ण मानता था और अपनी फीके पकवानवाली ऊंची दूकान का इतना ढिंढोरा पीटता था, इस बीच अपनी पांडित्यपूर्ण निष्कलुषता को धीरे-धीरे खो दिया।
सामंती अभिजात वर्ग और निरंकुश राजतंत्र के ख़िलाफ़ जर्मन और ख़ास तौर से प्रशाई बुर्जुआ वर्ग (Prussian bourgeoisie) का संघर्ष—दूसरे शब्दों में, उदारवादी आंदोलन—अधिक गंभीर बन गया।
इससे "सच्चे” समाजवाद को राजनीतिक आंदोलन के सामने समाजवादी मांगें रखने, उदारवाद, प्रतिनिधिमूलक सरकार, बुर्जुआ प्रतिस्पर्धा, बुर्जुआ प्रेस-स्वातंत्य, बुर्जुआ विधिनिर्माण, बुर्जुआ स्वतंत्रता और समानता, आदि पर पारंपरिक लानतों की बौछार करने और जनसाधारण को यह उपदेश देने का चिरवांछित अवसर प्राप्त हो गया कि इस बुर्जुआ आंदोलन से उन्हें कोई फ़ायदा नहीं, बल्कि नुक़सान ही नुक़सान होगा। जर्मन समाजवाद ने बड़े मौक़े से इस बात को भुला दिया कि फ़ांसीसी समीक्षा, जिसकी वह एक बेहूदा प्रतिध्वनि मात्र था, आधुनिक बुर्जुआ समाज के अस्तित्व की, उसके अस्तित्व की तदरूप आर्थिक अवस्थाओं की और उसके अनुरूप ढले राजनीतिक संविधान की, अर्थात ठीक उन्हीं चीज़ों की पूर्व-कल्पना करती थी, जिनकी प्राप्ति जर्मनी में अभी तक अनिर्णीत संघर्ष का लक्ष्य था।
जर्मन निरंकुश सरकारों को, उनके हवाली-मवाली पदारियों, प्रोफ़ेसरों, देहाती रईसों और नौकरशाहों को इस समाजवाद के रूप में भयोत्पादक बुर्जुआओं के ख़िलाफ़ एक मनचाहा हौआ मिल गया।
हंटरों और गोलियों की कड़वी ख़ुराक (bitter pills of flogging and bullets) के बाद, जो इन्हीं सरकारों ने ठीक उसी समय जर्मनी के विद्रोही मज़दूरों को पिलायी थी, वह एक मिष्ठान्न के समान था।
इस प्रकार, जहां यह "सच्चा” समाजवाद जर्मन बुर्जुआओं के ख़िलाफ़ लड़ाई में सरकारों का अस्त्र बन गया, वहीं प्रत्यक्ष रूप से उसने एक प्रतिक्रियावादी हित, जर्मन कूपमंडूकों के हित का प्रतिनिधित्व किया। जर्मनी में निम्नबुर्जुआ वर्ग ही, जो सोलहवीं शताब्दी का एक अवशेष है और तब से बारबार विभिन्न रूप धारण करके प्रकट होता रहा है, वहां की वर्तमान अवस्था का वास्तविक सामाजिक आधार है।
इस वर्ग को बरक़रार रखना जर्मनी की वर्तमान अवस्था को बरक़रार रखना है। बुर्जुआ वर्ग का औद्योगिक तथा राजनीतिक प्रभुत्व, एक ओर तो, पूंजी के संकेंद्रण द्वारा और दूसरी ओर, क्रांतिकारी सर्वहारा के उदय द्वारा, उसके निश्चित विनाश का ख़तरा पैदा करता है। "सच्चा” समाजवाद एक ही तीर से इन दोनों चिड़ियों को ख़त्म कर देता लगता था। अतः, “सच्चा” समाजवाद एक महामारी की तरह फैल गया।
जर्मन समाजवादीयों ने अपने दरूणाजनक "शाश्वत सत्यों” की ठठरी को जब कल्पनामय भावों के झीने आवरण में लपेटा, इस आवरण में आलंकारिक भाषारूपी फूलदार सलमेसितारों की क़सीदाकारी की और उसे रूग्ण भावुकता के नीहार-जल में भिगोकर बाज़ारों में ले आये, तो फिर क्या कहना था, ऐसे ख़रीदारों के बीच उनके माल की ख़ूब खपत हुई।
और अपनी ओर से जर्मन समाजवाद ने निम्नबुर्जुआ कूपमंडूक का आड़बरपूर्ण प्रतिनिधि होने के अपने पेशे को अधिकाधिक स्वीकार किया।
उसने जर्मन राष्ट्र को आदर्श राष्ट्र और जर्मन तुच्छ कूपमंडूक को ही आदर्श मानव घोषित कर दिया। इस आदर्श मानव की हर अपराधपूर्ण नीचता की उसने एक रहस्यमय, उच्च, समाजवादी ढंग की व्याख्या की, असलियत के बिलकुल विपरीत व्याख्या। अंत में तो वह कम्युनिज़्म की "पाशविक विनाशकारी” प्रवृत्ति का सीधे-सीधे विरोध करने और तमाम वर्ग संघर्षो के प्रति अपनी घोर, पक्षपातहीन अवज्ञा घोषित करने की पराकाष्ठा तक पहुंच गया। जर्मनी में आजकल (१८४७) समाजवादी और कम्युनिस्ट साहित्य के नाम से जिन चिज़ों का प्रचार हो रहा है, उनमें से बहुत थोड़े अपवादों को छोड़कर बाक़ी सब इसी गंदे और क्षयकारी साहित्य की कोटि में आती हैं।(३)
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) रूढ़िवादी अथवा बुर्जुआ समाजवाद (Conservative or Bourgeois Socialism)
बुर्जुआ वर्ग का एक हिस्सा इसलिए सामाजिक व्यथाओं को दूर करना चाहता है कि बुर्जुआ समाज को बरक़रार रखा जा सके।
अर्थशास्त्री, परोपकारी, मानवतावादी, श्रमजीवी वर्ग की हालत सुधारने का आकांक्षी, दीन सहायता संगठक, पशु-निर्दयता निवारण समाजों के सदस्य, दारूबंदी के दीवाने, हर कल्पनीय प्रकार के अनजान सुधारक इसी क्षेणी में आते हैं। इसके अलावा, इस तरह के समाजवाद का पूरी की पूरी पद्धतियों के रूप में विशदीकरण तक कर दिया गया है।
समाजवाद के इस रूप के उदाहरणस्वरूप हम प्रूदों की पुस्तक 'दरिद्रता का दर्शन' को ले सकते हैं।
बुर्जुआ-समाजवादी आधुनिक सामाजिक अवस्थाओं का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं, लेकिन उनके द्वारा अनिवार्यतः उत्पन्न संघर्षों और ख़तरों के बिना। वे मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखना चाहते हैं, लेकिन उसके क्रांतिकारी और विघटनकारी तत्वों के बिना। वे बुर्जुआ वर्ग का होना चाहते हैं, लेकिन सर्वहारा का नहीं। बुर्जुआ वर्ग स्वाभाविकतया उसी दुनिया को सर्वक्षेष्ठ मानता है, जिसमें वह सर्वेसर्वा हो; और बुर्जुआ समाजवाद इसी सुखद संकल्पना को विभिन्न न्यूनाधिक संपूर्ण पद्धतियों में विकसित कर देता है। इसलिए बुर्जुआ समाजवाद जब सर्वहारा से यह अपेक्षा करता है कि वह इस तरह की व्यवस्था को कार्यरूप दे और ऐसा करके सीधे सामाजिक नये यरूशलम में पहुंच जाये, तो दरअसल वह यही अपेक्षा करता है कि सर्वहारा वर्तमान समाज की सीमाओं के भीतर ही रहे, मगर बुर्जुआ वर्ग के बारे में अपने तमाम घृणामय इरादों को तिलांजलि दे दे।
इसे समाजवाद का एक दूसरा, अधिक व्यावहारिक, परंतु कम व्यवस्थित रूप प्रत्येक क्रांतिकारी आंदोलन को मज़दूर वर्ग की दृष्टि में यह दिखाकर गिराना चाहता है कि उसे मात्र राजनीतिक सुधारों से नहीं, अपितु जिवन की भौतिक अवस्थाओं, आर्थिक संबंधों में परिवर्तन से ही कोई लाभ हो सकता है। लेकिन जीवन की भौतिक अवस्थाओं में परिवर्तन से समाजवाद के इस रूप का मतलब बुर्जुआ उत्पादन संबंधों के उन्मूलन से कदापि नहीं है, जो क्रांति के ज़रिये ही संपन्न किया जा सकता है, बल्कि इन्हीं संबंधों पर आधारित प्रशासकीय सुधारों से है, अर्थात ऐसे सूधारों से, जो किसी हालत में पूंजी और श्रम के संबंधों में परिवर्तन नहीं लाते और ज़्यादा से ज़्यादा बुर्जुआ सरकार का ख़र्च कम कर देते हैं और उसके प्रशासकीय कार्यों को कुछ सरल बना देते हैं।
बुर्जुआ समाजवाद उपयुक्त अभिव्यक्ति तब और सिर्फ़ तब ही प्राप्त करता है, जब वह केवल भाषा का एक अलंकार बन जाता है।
मुक्त व्यापार : मज़दूर वर्ग के भले के लिए। संरक्षी शुल्क : मज़दूर वर्ग के भले के लिए। जेल-सुधार : मज़दूर वर्ग के भले के लिए। बुर्जुआ समाजवाद का यही हर्फ़े-आख़िर है, बस यही हर्फ़ है, जिसे वह संजिदगी से मानता है।
उसका लुब्बे-लुबाब इस मुहावरे में है : बुर्जुआ बुर्जुआ है—मज़दूर वर्ग के भले के लिए।

) समीक्षात्मक-यूटोपियाई समाजवाद और कम्युनिज़्म (Critical-Utopian Socialism and Communism)
यहां हम बाब्योफ़ (Babeuf) और दूसरे लेखकों की कृतियों की तरह के उस साहित्य की चर्चा नहीं कर रहे हैं, जिसने प्रत्येक महान आधुनिक क्रांति में सदा सर्वहारा की मांगों को मुखरित किया है।
अपने वर्ग लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सर्वहारा की पहली सीधी कोशिशों सार्वत्रिक उत्तेजना के काल में की गयी थीं, जब सामंती समाज का तख़्ता उलटा जा रहा था। सर्वहारा की उस समय की अविकसित अवस्था के कारण और साथ ही उसकी मुक्ति के लिए आवश्यक आर्थिक अवस्थाओं के अभाव के कारण—उन अवस्थाओं के, जिन्हें अभी उत्पन्न होना था और जो केवल आसन्न बुर्जुआ युग द्वारा ही उत्पन्न की जा सकती थीं—इन कोशिशों का असफल होना अनिवार्य था। सर्वहारा के इन पहले आंदोलनों का सहगामी क्रांतिकारी साहित्य अनिवार्यतः प्रतिक्रियावादी चिरित्र रखता था। वह सार्विक त्याग और भोंडे रूप में सामाजिक समतलन की भावनाएं पोषित करता था।
सेंट-सीमोन (Saint-Simon), फ़ुरिये (Fourier), ओवेन (Owen) तथा दूसरे लोगों की पद्धतियां, जिन्हें वस्तुतः समाजवादी और कम्युनिस्ट पद्धतियां कहा जा सकता था, सर्वहारा और बुर्जुआ वर्ग के बीच संघर्ष के उपरोक्त आरंभिक अविकसित काल में उदित होती हैं। (देखिये अध्याय १: 'बुर्जुआ और सर्वहारा')
इसमें संदेह नहीं कि इन पद्धतियों के संस्थापक तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में वर्ग विरोधों और विघटनशील तत्वों की क्रिया को देखते हैं। किंतु उन्हें सर्वहारा में, जो अभी अपने शैशव में ही था, किसी भी तरह की ऐतिहासिक पेशक़दमी अथवा स्वतंत्र राजनीतिक आंदोलन की कैसी भी क्षमता से हीन वर्ग की झलक ही मिलती हैं।
चूंकि वर्ग विग्रह का विकास उद्योग के विकास के साथ क़दम मिलाकर चलता है, इसलिए आर्थिक स्थिति—जैसे कि वे देखते हैं—अभी उन्हें सर्वहारा की मुक्ति के लिए आवश्यक भौतिक अवश्याएं प्रदान नहीं करती। इसलिए वे इन अवस्थाओं को उत्पन्न करने में समर्थ नये सामाजिक विज्ञान की, नये सामाजिक नियमों की तलाश करते हैं।
ऐतिहासिक कार्यकलाप का स्थान उनके व्यक्तिगत आविष्कारशील कार्यकलाप को, इतिहासतः सर्जित मुक्ति की अवस्थाओं का स्थान कल्पनाप्रसूत अवस्थाओं को और सर्वहारा के क्रमिक तथा स्वतःस्फूर्त्त वर्ग संगठन का स्थान इन आविष्कारकों द्वारा विशेष रूप के आविष्कृत समाज संगठन को ले लेना होगा। उनकी दृष्टि में भावी इतिहास अपने आपको उनकी सामाजिक योजनाओं के प्रचार और उनके व्यावहारिक क्रियान्वयन में परिणत कर लेता है।
अपनी योजनाओं की तैयारी में उन्हें सर्वाधिक पीड़ित वर्ग होने के नाते सबसे ज़्यादा मज़दूर वर्ग के हितों का ध्यान रखने का अहसास रहता है। सर्वहारा के अस्तित्व का उनकी दृष्टि में केवल एक अर्थ है—सर्वाधिक पीड़ित वर्ग।
वर्ग संघर्ष की अविकसित अवस्था और स्वयं अपने परिवेश के कारण इस तरह के समाजवादी अपने को तमाम वर्ग विग्रहों से बहुत ऊपर समझते हैं। वे समाज के प्रत्येक सदस्य की, सबसे संपन्न सदस्यों तक की हालत को बेहतर बनाना चाहते हैं। इसलिए वे आदतन वर्गों का लिहाज़ किये बिना आम तौर पर पूरे समाज से, या यों कहिये कि ख़ास तौर से शासक वर्ग से अपील करते हैं। कारण कि भला ऐसा कैसे हो सकता है कि उनकी प्रणाली को एक बार समझ लेने के बाद लोग यह न देख पायें कि वह समाज की यथासंभव क्षेष्ठतम व्यवस्था के लिए यथासंभव क्षेष्ठतम योजना है?
इसलिए वे हर तरह की राजनीतिक, और ख़ास तौर से क्रांतिकारी कार्रवाई को अस्वीकार करते हैं; अपने उद्देश्यों को वे शांतिमय तरीकों से हासिल करना चाहते हैं और छोटे-छोटे प्रयोगों के ज़रिये, जिनकी असफलता अवश्यंभावी है, और उदाहरण के ज़ोर से अपने नवीन सामाजिक दिव्य-संदेश के लिए मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश करते हैं।
एक ऐसे समय, जब सर्वहारा अब भी अत्यंत अविकसित अवस्था में ही है और उसे स्वयं अपनी स्थिति की अत्यंत काल्पनिक धारणा ही है, चित्रित भावी समाज के ये अतिकाल्पनिक चित्र समाज के व्यापक पुनर्निर्माण की उस वर्ग की प्रथम नैसगिंक आकंक्षाओं से मेल खाते हैं।
किंतु इन समाजवादी और कम्युनिस्ट प्रकाशनों में समीक्षात्मक तत्व भी पाया जाया है। वे वर्तमान समाज के प्रत्येक सिद्धांत पर प्रहार करते हैं। अतः, वे मज़दूर वर्ग के प्रबोधन के लिए अत्यंत मूल्यवान सामग्री से परिपूर्ण हैं। उनमें प्रस्तावित व्यावहारिक उपाय, जैसे शहर और देहात के बीच अंतर का, परिवार का, अलग-अलग व्यक्तियों के निजी फ़ायदे के लिए उद्योगों के चलाये जाने और उजरती व्यवस्था का उन्मूलन, सामाजिक सामंजस्य की उदघोषण, राज्य की क्रिया का केवल उत्पादन के अधीक्षण में रूपांतरण—ये सभी उपाय केवल उन वर्ग विग्रहों के विलोपन की दिशा की ओर इंगित करते हैं, जो उस समय उठ ही रहे थे और इन प्रकाशनों में जिन्हें केवल अपने सबसे प्रारंभिक, अस्पष्ट और अपरिभाषित रूप में ही मान्यता दी गयी है। इसलिए ये प्रस्ताब शुद्धतः यटोपियाई—काल्पनिक—स्वरूप के हैं।
समीक्षात्मक-यूटोपियाई समाजवाद तथा कम्युनिज़्म का महत्व ऐतिहासिक विकास के व्युत्क्रमानुपात में है। जितना ही आधुनिक वर्ग संघर्ष विकसित होता और निश्चित रूप ग्रहण करता जाता है, उतना ही संघर्ष से यह बेतुकी निस्संगता, उस पर ये बेतुके प्रहार अपने सारे व्यावहारिक महत्व और सैद्धांतिंक औचित्य को गंवाते जाते हैं। फलतः, जहां इन पद्धतियों के प्रवर्तक कई बातों के लिहाज से क्रांतिकारी थे, वहां उनके अनुगामियों ने, हर ही मामले में, केवल प्रतिक्रियावादी संप्रदाय ही स्थापित किये हैं। सर्वहारा के प्रगामी ऐतिहासिक विकास के बावजूद वे अपने गुरुओं के मूल विचारों से चिपके हुए हैं। इसलिए वे निरंतर वर्ग संघर्ष को स्तब्ध करने और वर्ग विग्रहों में सामंजस्य स्थापित कराने की कोशिश करते हैं। वे अब भी अपनी सामाजिक यूटोपियाओं की प्रयोगों द्वारा सिद्धि करने, इक्के-दुक्के "फ़ालांस्तेर” खड़े करने, “गृह-उपनिवेश” (Home Colonies) स्थापित करने, एक नयी "छोटी इकारिया”() (Little Icaria)नये यरूशलम का जेबी संस्करण—क़ायम करने के सपने देखते हैं, और इन सभी हवाई क़िलों को अमली शक्ल देने के लिए उन्हें बुर्जुआओं की भावनाओं और थैलियों का आक्षय लेने को मजबूर होना पड़ता है। धीरे-धीरे ये लोग भी प्रतिक्रियावादी रूढ़िवादी समाजवादियों की क्षेणी में पहुंच जाते हैं, जिनका ऊपर चित्रण किया गया है। अंतर केवल इतना रहता है कि उनकी अपेक्षा इनका पांडित्य अधिक सुव्यवस्थित है और अपने सामाजिक विज्ञान के चमत्कारी नतीजों में वे कट्टर और मूढ़ग्राही विश्वास रखते हैं।
इसलिए मज़दूर वर्ग की हर राजनीतिक कार्रवाई का वे प्रचंड विरोध करते हैं; उनके मुताबिक़ ऐसी कार्रवाईयां केवल नये दिव्य-संदेश में अंध अविश्वास का ही परिणाम हो सकती हैं।
इंगलैंड में ओवेनपंथी (Owenites) चार्टिस्टों का, और फ़्रांस में फ़ुरियेपंथी (Fourierists) रिफ़ार्मिस्टों (Réformistes) का विरोध करते हैं।

) इंगलैंड में १६६० से १६८९ का पुनःस्थापन-काल नहीं, बल्कि फ़्रांस में १८१४ से १८३० का पुनःस्थापन-काल। [१८८८ के अंग्रेज़ी संस्करण में ऐगेल्स की टिप्पणी

) यह मुख्यतया जर्मनी पर लागू होता है, जहां भूसंपत्तिधारी अभिजात और युंकर अपनी ज़मीन के बहुत बड़े हिस्से को अपनी ओर से गुमाश्तों से काश्त करवाते हैं और, इसके अलावा, बड़े पैमाने पर चुक़ंदर से चीनी और आलू से स्पिरिट बनाने का भी रोज़गार करते हैं। ब्रिटेन के अधिक धनिक अभिजात अभी इस हद तक नहीं गिरे हैं; लेकिन वे भी जानते हैं कि किस तरह न्यूनाधिक संदिग्ध संयुक्त पूंजी कंपनियों के प्रवर्तकों में अपना नाम देकर किराया ज़मीन की घटती हुई आमदनी को पूरा किया जाये। [१८८८ के अंग्रज़ी संस्करण में एंगेल्स की टिप्पणी।

) १८४८ की क्रांतिकारी आंधी ने इस पूरी लिचड़ प्रवृत्ति का सफ़ाया कर दिया और उसके समर्थकों की समाजवाद में टांग अड़ाने की इच्छा को दूर कर दिया। इस प्रवृत्ति के मुख्य और क्लासिकी प्रतिनिधि क्षी कार्ल ग्रून हैं। [१८९० के जर्मन संस्करण में एंगेल्स की टिप्पणी।]

) “फ़ालांस्तेर” शार्ल फ़ुरिये की योजना पर आधारित समाजवादी बस्तियां थीं; “इकारिया” काबे द्वारा कल्पना-नगरी (यूटोपिया) को और बाद में अमरीका की अपनी कम्युनिस्ट बस्ती को भी दिया गया नाम था। [१८८८ के अंग्रजी संस्करण में एंगेल्स की टिप्पणी।]
ओवेन अपने आदर्श कम्युनिस्ट समाजों को "Home colonies” (“गृह-उपनिवेश”) कहते थे। "फ़ालांस्तेर” फ़ुरिये द्वारा कल्पित सार्वजनिक प्रासादों का नाम था। "इकारिया” उस कल्पना-देश को दिया नाम था, जिसकी कम्युनिस्ट संस्थाओं को काबे ने चित्रित किया था। [१८९० के जर्मन संस्करण में एंगेल्स की टिप्पणी।]